नारी स्वंत्रता
जब भी मैं सोचता
मै कौन हु
तभी स्मरण हो जाता
उपवन में उड़ता एक परिंदा
मन तो स्वातंत्र बिचरण करता
पर न जाने क्या हो जाता
तभी मै सोचता
काश मै निर्बल न होता
न जाना ये क्यों करते
करते करते थक नहीं जाते
मन में एक हुक नहीं उठती
रूह उनकी काप नहीं जाती
ओ भगवान के बनाये
इन्सान के रूप में जन्मे
मन को जरा टटोल
मन में उथल - पुथल न होती
रूह काप उठेगी
मन थर्रा उठेगा
अगर तो भी कुछ न हो
असमंजस में पड़ जाएग मानव
मै कौन हु
तभी स्मरण हो जाता
उपवन में उड़ता एक परिंदा
मन तो स्वातंत्र बिचरण करता
पर न जाने क्या हो जाता
तभी मै सोचता
काश मै निर्बल न होता
न जाना ये क्यों करते
करते करते थक नहीं जाते
मन में एक हुक नहीं उठती
रूह उनकी काप नहीं जाती
ओ भगवान के बनाये
इन्सान के रूप में जन्मे
मन को जरा टटोल
मन में उथल - पुथल न होती
रूह काप उठेगी
मन थर्रा उठेगा
अगर तो भी कुछ न हो
असमंजस में पड़ जाएग मानव
No comments: